Tuesday, March 6, 2012

राष्ट्रकवि: रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर का  जन्म २३ सितंबर १९०८ को सिमरियाघाट , बेगुसराय  जिला (१८७० ईस्वी में यह मुंगेर जिले के सब-डिवीजन के रूप में स्थापित हुआ। १९७२ में बेगूसराय स्वतंत्र जिला बना।), बिहार में हुआ था। 

स्वतंत्रता पूर्व के विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज विद्रोह आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल शृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरुक्षेत्र और उर्वशी में मिलता है।
पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक हाईस्कूल में अध्यापक हो गए। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। १९५० से १९५२ तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।

दिनकर जी को  भारत सरकार की उपाधि पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया। आपकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कर प्रदान किए गए।

गद्य रचनाएँ की इनकी प्रमुख कृतियाँ में " मिट्टी की ओर"," अर्धनारीश्वर"," रेती के फूल"," वेणुवन", "साहित्यमुखी", "काव्य की भूमिका"," प्रसाद पंत और मैथिलीशरणगुप्त", "संस्कृति के चार अध्याय" आदि थे।

मुख्य पद्य रचनाएँ में " रेणुका"," हुंकार", "रसवंती", "कुरूक्षेत्र"," रश्मिरथी"," परशुराम की प्रतिज्ञा"," उर्वशी"," हारे को हरिनाम"।
२४ अप्रैल १९७४ को इनका स्वर्गवास हुआ।

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