Tuesday, March 20, 2012

शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिललाह खां

नाम अज्ञात
 डुमरावं के ब्लॉगर के ब्लॉग से
ब्लॉग का नाम 'खट्टी-मिठ्ठी बातें'


शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिललाह खां को भला  कौन नहीं जानता,  विलक्षण प्रतिभा के धनी उस्ताद बिस्मिललाह खां को "भारत रत्न" की उपाधि से नवाजा गया है. 
संसार के कोने-कोने में अपनी शहनाई की स्वर लहरियां बिखेरने वाले बिस्मिललाह खां आज भले हीं हमारे बीच नहीं हैं। मगर उनके द्वारा सात सुरों की संगिनी में छेड़ी गई स्वर लहरियां आज भी सबके जेहन में रच बस गई है।

21 अगस्त 2006 को रात के 2-20 मिनट पर वाराणसी के हेरिटेज अस्पताल में शहनाई की सुर थम गई और रह गई तो बस उनकी यादें और उनके बजाए धुन।

भोजपुरी गीत और मिर्जापुरी कजरी को बाखूबी शहनाई पर बजाने वाले उस्ताद गंगा-जमनी संस्कृति, हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों के बीच के सेतू बड़े सहज भाव के थे। जिन्हें अपने वतन से बेहद प्यार था। तभी तो लाख विदेशो  में बसने की बातें भी उस शख्स  को बिचलित नहीं कर पाई।
21 मार्च 1916 को गरीबी और जलालत की जिन्दगी जीने वाले उस्ताद का जन्म बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में हुआ था। कमरुददीन को अब्बा जान पैगम्बर बख्श उर्फ बचई मियां बड़ा अधिकारी बनाना चाहते थे। मगर इन्हें पढ़ाई में कोई रुची नहीं थी। तभी तो महज चैथी तक ही किसी तरह पढ़ाई कर पाए। अब्बा जान डुमरांव राज में दरबारी वादक हुआ करते थे। घर में इस माहौल को देखकर- सुनकर दस वर्ष की अवस्था में अपने मामू अली बख्श के साथ वाराणसी जा पहुंचे। 14 वर्ष की उम्र में इलाहबाद में  शहनाई वादन कर पीछे मुड़कर देखने का मौका ही नही मिला। बालक कमरुद्दीन एक दिन शहनाई का बादशाह बन बैठा।

अपनी जिन्दगी में कमरुद्दीन ने बहुत उतार-चढ़ाव देखी। वक्त से पहले मामू अली बख्स की मौत ने इन्हें झकझोर कर रख दिया। इस दर्द से उबर भी नहीं पाए थे कि बड़े भाई शम्सुद्दीन की मौत से टूट गए। इनकी शहनाई धुन छेड़ना भुल गई। बस रह गई इनके पास तो दर्द भरी यादें.◦

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